हज़रत मुहम्मद ﷺ की दैनिक दिनचर्या — सुकून और सेहत देने वाली सुन्नत भरी ज़िंदगी
जानिए हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद ﷺ की रोज़मर्रा की दिनचर्या — जो इबादत, परिवार, काम और आराम के बीच एक खूबसूरत संतुलन है। उनकी सुन्नत जीवनशैली न सिर्फ़ आत्मिक सुकून देती है, बल्कि आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में मानसिक और शारीरिक सेहत का राज़ भी है।
10/22/20251 मिनट पढ़ें
परिचय: एक रौशन ज़िंदगी का नज़ारा
सारी तारीफ़ें उस अल्लाह के लिए हैं जिसने हमें सबसे बेहतरीन इंसान — हमारे प्यारे नबी मुहम्मद ﷺ — को रहमत बनाकर भेजा।
वो किसी एक क़ौम या एक दौर के लिए नहीं, बल्कि सारी इंसानियत के लिए रहमत बनकर आए। सुभानअल्लाह!
मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाही व बरकातहु।
अगर किसी मुसलमान से पूछा जाए —
“अल्लाह के बाद तुम किससे सबसे ज़्यादा मोहब्बत करते हो?”
तो जवाब हमेशा यही होगा:
हमारे प्यारे नबी मुहम्मद ﷺ से।
हमने उन्हें देखा नहीं, उनके ज़माने में जिए नहीं,
लेकिन फिर भी वो हमारे दिलों में सबसे ज़्यादा बसते हैं।
उनका नाम सुनकर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है,
और जन्नत में उनसे मिलने की आरज़ू दिल में रहती है।
क्योंकि मोहब्बत को देखने की नहीं, सुन्नत की ज़रूरत होती है।
लेकिन अगर हम सच में उनसे मोहब्बत करते हैं —
तो क्या हमें उनकी तरह जीने की कोशिश नहीं करनी चाहिए?
आइए जानते हैं —
रसूलुल्लाह ﷺ की दिनचर्या,
जो दिल को सुकून, दिमाग को तवज्जोह (एकाग्रता), और जिस्म को तंदुरुस्ती देती है।
फ़ज्र से पहले — बरकत भरी शुरुआत
नबी मुहम्मद ﷺ अपना दिन रात के आख़िरी हिस्से में, फ़ज्र से पहले शुरू करते थे।
वो उठकर तहज्जुद नमाज़ अदा करते — जो अल्लाह के क़रीब लाने वाली मोहब्बत की नमाज़ है।
उन्होंने फ़रमाया:
“फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ तहज्जुद है।” (मुस्लिम)
और फ़रमाया:
“हमारा रब हर रात के आख़िरी हिस्से में आसमान-ए-दुनिया पर उतरता है और कहता है —
‘कौन है जो मुझे पुकारे ताकि मैं जवाब दूँ? कौन है जो मुझसे माफ़ी मांगे ताकि मैं माफ़ कर दूँ?’” (बुख़ारी, मुस्लिम)
ज़रा सोचिए — जब सारी दुनिया सो रही होती है,
अल्लाह ख़ुद अपनी रहमत की पुकार लगा रहा होता है।
जो उस पुकार का जवाब देता है, उसके दिल को सुकून कैसे न मिले?
फ़ज्र के बाद — ज़िक्र, तफ़क्कुर और नबीज़
फ़ज्र की नमाज़ के बाद, नबी ﷺ अल्लाह का ज़िक्र करते हुए सवेरे तक बैठे रहते।
उन्होंने दुआ की:
“ऐ अल्लाह! मेरी उम्मत के सुबह के वक्त में बरकत अता फ़रमा।” (तिर्मिज़ी)
इसके बाद वो नबीज़ पीते —
जो खजूर या किशमिश को रातभर पानी में भिगोकर बनाई जाती थी।
यह ताज़गी देने वाला, हलाल एनर्जी ड्रिंक है —
कॉफ़ी का सुन्नत वाला विकल्प!
उनका खाना — सादगी और बरकत से भरा हुआ
हमारे नबी ﷺ सिर्फ़ खाने के लिए नहीं खाते थे,
बल्कि शुक्र अदा करने और तंदुरुस्ती के लिए खाते थे।
उन्होंने फ़रमाया:
“आदम की औलाद अपने पेट से ज़्यादा बुरा कोई बर्तन नहीं भरती।
कुछ लुकमे काफ़ी हैं, जिससे उसकी कमर सीधी रहे।” (तिर्मिज़ी)
उनको सादा और पाक खाना पसंद था — खजूर, जौ की रोटी, शहद, दूध, जैतून का तेल और सिरका।
वो गुनगुना पानी पीते थे, तीन सिप्स में,
और ‘बिस्मिल्लाह’ से शुरू करके ‘अल्हम्दुलिल्लाह’ से खत्म करते थे।
यहाँ तक कि उनका खाना भी इबादत बन गया था।
सुभानअल्लाह!
दिन का वक़्त — काम, परिवार और ख़िदमत
सूर्योदय के बाद नबी ﷺ अपने कामों में लग जाते —
सहाबा को सिखाना, बीमारों की अयादत करना,
या अपने घर के कामों में मदद करना।
उन्होंने फ़रमाया:
“तुममें सबसे बेहतर वो है जो अपने घरवालों के लिए सबसे बेहतर हो।” (तिर्मिज़ी)
वो अपने कपड़े सीते थे, बकरियों का दूध निकालते थे,
घर के कामों में हाथ बँटाते थे —
दुनिया के सबसे महान इंसान, लेकिन घर में सबसे विनम्र।
दोपहर की आराम — क़ईलूलह (Qailulah)
ज़ुहर की नमाज़ के बाद नबी ﷺ थोड़ी देर आराम करते थे —
इसे क़ईलूलह (दोपहर की नींद) कहा जाता है।
उन्होंने फ़रमाया:
“दोपहर में थोड़ा सोया करो, क्योंकि शैतान नहीं सोते।” (तबरानी)
आज की साइंस भी कहती है कि
थोड़ी नींद याददाश्त, ध्यान और दिल की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है।
शाम का वक़्त — परिवार, ज़िक्र और दुआ
असर या मगरिब के बाद नबी ﷺ अपने परिवार के साथ वक्त गुज़ारते —
मुस्कुराते, बातें करते, और सिखाते।
उनकी एक प्यारी शाम की दुआ थी:
अल्लाहुम्मा इन्नी अउदु बिका मिनल-हम्मी, वल-हजानी, वल-अज्जी, वल-कसाली, वल-बुखली, वल-जुबनी, वा घलाबतार-रिजल”
“ऐ अल्लाह, मैं तुझसे पनाह मांगता हूँ — ग़म और परेशानी से, कमजोरी और आलस से,
कंजूसी और डरपोकपन से, कर्ज़ के बोझ और लोगों के ज़ुल्म से।” (बुख़ारी)
आज कितने लोग टेंशन और एंग्ज़ायटी से जूझ रहे हैं?
सुभानअल्लाह! — इलाज तो इसी दुआ में छिपा है।
सोने से पहले — सुकून भरी रात की दिनचर्या
इशा की नमाज़ के बाद नबी ﷺ जल्दी सो जाते थे और कहा करते:
“इशा के बाद बातचीत न किया करो।” (बुख़ारी)
सोने से पहले वो:
वुज़ू करते
आयतुल कुर्सी पढ़ते
सूरह इख़लास, फ़लक़, नास तीन-तीन बार पढ़ते
और दाईं करवट पर लेटकर कहते:
“बिस्मिकल्लाहुम्मा अह्या व बिस्मिक अमूत।”
“तेरे नाम से ही मैं ज़िंदा हूँ और तेरे नाम से ही मरूँगा।” (बुख़ारी)
उनकी नींद भी ज़िक्र और सुकून से भरी होती थी।
उनकी ज़िंदगी का राज़ — तौल और बरकत
नबी ﷺ का दिल हमेशा अल्लाह से जुड़ा रहता था।
वो रोज़ाना सत्तर से ज़्यादा बार इस्तिग़फ़ार करते थे।
घर से निकलते वक्त — “बिस्मिल्लाही तवक्कलतु ‘अलल्लाह।”
कुछ अच्छा देखते तो — “सुभानअल्लाह।”
ख़ुशख़बरी सुनते तो — “अल्हम्दुलिल्लाह।”
यही था उनका राज़ — एक तौली हुई, अल्लाह से जुड़ी हुई ज़िंदगी।
आधुनिक ज़माने में सुन्नत को अपनाना
आज हम सुबह उठते ही फोन देखते हैं —
“अल्हम्दुलिल्लाह” कहने से पहले।
क्या हो अगर हम इसे बदल दें?
फज्र से पहले उठकर अल्लाह से कुछ लम्हे बातें करें।
नमाज़ तक फोन से दूर रहें।
सादा खाना खाएँ, ज़्यादा न खाएँ।
घरवालों की मदद करें, मुस्कुराएँ — बरकत देखेंगे।
जल्दी सोएँ और सुबह जल्दी उठें।
रसूलुल्लाह ﷺ की ज़िंदगी सिर्फ़ रूहानी नहीं थी — वो साइंस के लिहाज़ से भी मुकम्मल थी।
मोहब्बत और अमल का पैग़ाम
मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, अगर हमें रसूलुल्लाह ﷺ के साथ जीने का मौका मिलता —
तो क्या हम उन्हें खुश करने की कोशिश नहीं करते?
तो आइए हम हर दिन ऐसे जिएँ — जैसे वो हमें देख रहे हों।
ताकि क़यामत के दिन हम कह सकें —
“या रसूलअल्लाह, मैंने आपकी राह पर चलने की कोशिश की।”
छोटे कदम से शुरुआत करें — एक सुन्नत एक बार में।
सिर्फ़ हफ़्ते में एक दिन तहज्जुद पढ़ लें, या फज्र तक फोन न देखें।
हर सुन्नत में बरकत है, जो हमें अल्लाह और उसके रसूल ﷺ के क़रीब ले जाती है।
रसूलुल्लाह ﷺ ने सिर्फ़ नमाज़ नहीं सिखाई —
बल्कि जीने का तरीका, खाने का, सोने का, मुस्कुराने का, माफ़ करने का सलीका सिखाया।
ऐ अल्लाह, हमें अपने प्यारे नबी ﷺ की सुन्नत पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा,
हमारे घरों में बरकत और हमारे दिलों में उनकी मोहब्बत बढ़ा दे।
आमीन।
अगर आप सच में हज़रत मुहम्मद ﷺ से मोहब्बत करते हैं — तो सिर्फ़ कहिए मत… वैसे जिएँ जैसे उन्होंने जिया।
जज़ाकुमुल्लाहु खैरन पढ़ने के लिए शुक्रिया।
अल्लाह आपकी ज़िंदगी को सुन्नत की रौशनी, बरकत और सुकून से भर दे। आमीन।
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